भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 26 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अक्षय उपाध्याय |संग्रह =चाक पर रखी धरती / अक्षय उ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों नहीं गाती तुम गीत हमारे
क्यों नहीं तुम गाती

बजता है संगीत तुम्हारे पूरे शरीर से
आँखें नाचती हैं
पृथ्वी का सबसे ख़ूबसूरत
नृत्य

फिर झील-सी आँखो में
सेवार क्यों नहीं उभरते

एक नहीं कई-कई हाथ सहेजते हैं तुम्हारी आत्मा को
एक नहीं
कई-कई हृदय केवल तुम्हारे लिए धड़कते हैं
क्यों नहीं फिर तुम्हारा सीना
फूल कर पहाड़ होता

प्रेम के माथे पर डूबी हुई
तुम
धूप में अपने बाल कब सुखाओगी
कब गाओगी हमारे गीत

धान रोपती
एक स्त्री
केवल स्त्री नहीं होती

तुम वसंत हो
पूरी पृथ्वी का
तुम स्वप्न हो
पूरी पृथ्वी का
तुम्हारी बाँहों में छटपटाते हैं हम और
सूखते हैं हमारे गीत
वसंत पीते हुए इस मौसम में
क्यों नहीं गाती तुम
क्यों नहीं तुम गाती गीत हमारे ?