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फूलों का गुच्छा / स्वप्निल श्रीवास्तव
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फूलों का एक गुच्छा है उसके हाथ में और वह
बढ़ रही है बाग की तरफ़
बन्द है बाग कि अचानक फूलों के गुच्छे
चाबियों में बदल गए
वह बाग को खोल रही है
वह हवा की तरह प्रवेश कर रही है बाग में
बाग में मच गई है हलचल
उसके स्वागत में हिलने लगी हैं शाखें
रास्ते में बिछने लगे हैं फूल
गूँजने लगे हैं कलरव
आश्चर्य से भर गई हैं सभी चीज़ें
ऎसा आश्चर्य तब होता है जब वह आती है
खनकती हुई बाग में अपूर्व उल्लास के साथ
एक साथ बजने लगते हैं हज़ारों घूंघरू
सम्पन्न हो रहा हो जैसे कोई नृत्य-उत्सव
फूलों के कई रंगों में लहकने लगता है उपवन