भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बारिश : चार प्रेम कविताएँ-4 / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:26, 8 अगस्त 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ताख़ पर दियासलाई }} कितना...)
कितना अच्छा लगता है
जब बारिश होती है
जंगल में
भीगती हुई वनस्पतियों से
उठती है ख़ुशबू
और जंगल के ऊपर
फैल जाती है
एक हिरन-शावक
छतनार पेड़ के नीचे
ठिठका हुआ खड़ा रहता है
क्या तुम उसे जानती हो प्रिय
वह मैं हूँ
दुनिया के कोलाहल से भागा हुआ
एक मनुष्य
पृथ्वी की हरियाली में
सुनने आया हूँ एक
आदिम संगीत
क्या तुम गाओगी प्रिय
इस घनी बारिश में