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मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना / नवीन सी. चतुर्वेदी

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मुश्क़िलों का प्रलाप क्या करना
बेहतर है मुकाबला करना

वो ही मेंढक कुएं से बाहर हैं
जिनको आता है फैसला करना

जिस की बुनियाद ही मुहब्बत हो
उस की तारीफ़ यार क्या करना

जब वो खुद को तलाश लें, खुद में
बेटियों को तभी विदा करना

हम वो बुनकर जो बुनते हैं चादर
हमको भाए न चीथड़ा करना

हम तो खुद ही निसार हैं तुम पर
चाँद-तारे निसार क्या करना

बातें करते हुए - हुई मुद्दत
आओ सोचें, कि अब है क्या करना