Last modified on 9 अगस्त 2007, at 21:50

मेरठ-5 / स्वप्निल श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:50, 9 अगस्त 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वप्निल श्रीवास्तव |संग्रह=ताख़ पर दियासलाई }} मेरठ ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मेरठ के सारे छूरे-कैंचियाँ

बिक गई हैं, मगर

शहर के चेहरे पर पहली जैसी

गझिन दाढ़ी है

जिसमें चोर खोज रहे हैं तिनके

क़त्ल और आगजनी की अफवाहें

तथा बच्चों के गुम होने की

सूचना है


बेगम ब्रिज के चौराहे पर

चिन्तित होकर मैं बच्चों के

वापस लौटने की राह

देख रहा हूँ


मगर यह क्या ?

मेरी ओर आ रही हैं

छूरियाँ और कैंचियाँ