भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ताकि सनद रहे / श्रीरंग

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:10, 30 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीरंग |संग्रह= नुक्कड़ से नोमपेन्ह }} {{KKCatNavgeet}} <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल
तुम रहोगे हम नहीं ...

कल की तैयारी
तुम्हे करनी होगी
कल के लिए संसाधन
तुम्हें जुटाने होंगे
कल तुम्हारा होगा तुम्हारे लिए .....

तुम्हारे कल में
हम तो तुम्हारे
बीते हुए कल होगें
पीछे खत्म हो चुके वक्त .....

कल हम नहीं
हमारे शब्द होगें तुम्हारे साथ
कल कोसना मत
कल नसीहतें देने वाले नहीं
बस नसीहतें होगीं साथ ........
यह कविता
मैं आज लिख रहा हूँ
तुम्हारे कल के लिए
ताकि सनद रहे
और काम आवे
वक्त जरूरत पर .....।