कहा तुमने यों तो साफ़ थीं दीवारें अलबत्ता दो लाचार हाथों के फिसले हुए निशान थे नीचे ज़मीन तक सरक आये कोई नहीं था वहाँ दीवार के सामने सिर्फ थी गोली चलने की अदीख घटना और थी खड़ी भूल जाने के विरुद्ध चुप दीवार कहा तुमने यहीं से शुरू होती है तुम्हारी कविता