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ग़ैर कह कर मुझे पुकारेगा / रोशन लाल 'रौशन'
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ग़ैर कह कर मुझे पुकारेगा
क्या मेरा दोस्त मुझसे हारेगा
उसकी रातें बड़ी सुखद होंगी
जो मुहब्बत में दिन गुज़ारेगा
कामयाबी गले लगाएगी
जो समय के चरण पखारेगा
ताड़ को आसमान कहता है
कौन कमज़र्फ़ को उतारेगा
रूढ़ियों में फँसा हुआ इन्सान
नफ़्स का आइना सँवारेगा
कथ्य के फल उसे मिलेंगे जो
शब्द की आरती उतारेगा
जो भी चाहेगा मुझसे जीतेगा
जो भी सोचेगा मुझसे हारेगा
आदमीयत से वास्ता ही नहीं
फ़र्ज़ किरदार का उतारेगा
रूप शब्दों का शेर में ढल जाए
आइना-आइना निहारेगा
इतने आबाद हैं ये वीराने
वक़्त कोई कहाँ गुज़ारेगा
डूबने का हुनर है वो 'रौशन'
ये भँवर भी मुझे उबारेगा