भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिरछ अर आदमी-4 / पूर्ण शर्मा पूरण
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:21, 6 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूर्ण शर्मा पूरण |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMoolRajasthani}}<poem>ल…)
लफंणा मांय
चिंचाट करता चिड़िया
इण डाळी सूं उण डाळी तांई
उडती पांख्यां
खरखोदरां मांय उडीकती आंख्यां
अर अठै तांई कै
मुस्कल सूं ठरड़ीज आई
सांसां नै ई
कीं नां कीं देयां पछै
उबरतौ ई रैवै
उण कंनै बिरछपंणौ।