भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

है नमन उनको / कुमार विश्वास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:59, 27 फ़रवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर

इस जगत के शऔर्य की जीवित कहानी हो गये

है नमन उनको की जिनके सामने बऔना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये


पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा

माँ वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई

बहन जिसने सावनों मे भर लिया पतझड स्वँय ही

हाथ ना उलझ जाऐ, कलाई से जो राखी खोल लाई

बेटियाँ जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी

'पिता तुम पर गर्व है ' चुपचाप जाकर बोल आईं

प्रिया जिसकी चूडियों मे सितारे से टूटतें हैं

माँग का सिंदूर देकर जो सितारें मोल लाई

है नमन उस देहरी पको जिस पर तुम खेले कन्हैया

घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये

है नमन उनको की जिनके सामने बऔना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये


हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ

हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है

नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी

सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे

शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है

जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी

उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है

है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन

काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये

है नमन उनको की जिनके सामने बोना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये


लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे

विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है

राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं

देशहित प्रतिबद्ध यऔवन कै सपन तुमको नमन है

बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे

पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है

है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन

शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये


कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,

राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है

है नमन उनको की जिनके सामने बऔना हिमालय

जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये