भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुईं छुट्टियाँ / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:57, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=इक्यावन बालगीत / रमेश तैलंग }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुईं छुट्टियाँ अब पहाड़ों पे आएँ ।
झरनों की कल-कल के संग गुनगुनाएँ ।
धरती को छाया दिए जो खड़ा है
चलो, उस गगन से निगाहें मिलाएँ ।

अभी तक पढ़ाई ने था हमको मारा ।
रटते सबक, दिन गुज़रता था सारा ।
न पल भर की फुरसत कभी खेलने की
बुरा हाल सचमुच हुआ था हमारा ।
मगर मौज है अब जहाँ चाहें घूमें
किरण बन के हम हर तरफ़ झिलमिलाएँ ।

घने ऊँचे पेड़ों की लम्बी कतारें ।
फूलों की ख़ुशबू में भीगी बहारें ।
बुलाती हैं फिर हमको फैला के बाहें,
चलो आज हम इनका घूँघट उतारें ।
क़दम-दर-क़दम उस क्षितिज तक चलें हम
गले मिल रही हैं जहाँ पर हवाएँ ।

न मम्मी की गिटपिट, न पापा का डर हो ।
अकेले हों हम और सुहाना सफ़र हो ।
न बँधन में बाँधे हमें आज कोई
खुला आसमाँ बस इधर हो, उधर हो ।
जुड़े पंक्तियों में, उड़ें पंछियों से
दिशाओं पे लिख दें हम अपनी कथाएँ।