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अँधेरे के खिलाफ / रवि प्रकाश

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जब भी रात घनी हुई

आपनी गोंद में लिए दादी ने

अपनी किस्सों की दुनिया से

मेरी स्मृतियों के आसमान पर टाँके

चाँद ,तारे और जुगनू

खिंच डाले गुहा अन्धकार के आसमानी स्लेट पर

चान तारों के शब्द चित्र !


और माँ

जब सूरज घुलने लगता

सागर के घूँघट में !

आँगन में उतरी ताड़ की परछाई

धीरे धीरे वापस लौटने लगती,

चमकती गुलमोहर की पत्तियां

ओस के रंग की हो जाती

ऐसे में माँ

रसोईघर में दिया जलाती

आँचल का एक कोना पकड

ढांपे दिए को

आँगन पार करती

एकटक लौ की निहारती हुई

दालान के चौकठ पर रख आती !

यही मेरे प्रतिरोध की प्रेरणाए हैं

अँधेरे के खिलाफ !