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आवारगी का रक्स/ सजीव सारथी

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उन नन्हीं आँखों में,
देखो तो, देखो न,
शायद खुदा का अक्स है,
या आवारगी का रक्स है...
उन हसीं चेहरों को,
देखो तो, देखो न,
सारे जहाँ का हुस्न है,
या जिंदगी का जश्न है...

बेपरवाह, बेगरज,
उडती तितलियों जैसी,
हर परवाज़ आसमां को,
छूती सी उनकी,
पथरीले रास्तों पे,
लेकर कांच के सपने,
आँधियों से, पल पल,
लड़ती लौ, जिंदगी उनकी,

हँसी ठहाकों में, छुपी गीतों में,
दबी आहें भी है,
कौन देखे उन्हें,
जगी रातों में, घुटी बातों में,
रुंधी सांसें भी है,
कौन समझे उन्हें...

उन सूनी आँखों में,
झांको तो, झांको न,
कुछ अनकही सी बातें हैं,
सहमी सहमी सी रातें हैं,
उन नंगे पैरों तले,
देखो तो, देखो न,
सारे शहर का गर्द है,
मैले मैले से दर्द हैं....
              

  • स्वरबद्ध गीत, आवाज़ महोत्सव-३, संगीत – ऋषि एस