जिनका है ये देश / हरीश बी० शर्मा
मेरे दोस्त मुझे पता है
तुम अपने को सिकंदर
बाकी दुनिया को बंदर समझते हो
लेकिन दोस्त मेरे सुनो
बंदर भले ही
अदरक के मामले में कन्यूज हो जाएं
लेकिन उस्तरे के मामले में उन्हें
ज्यादा ज्ञान नहीं चाहीए
इसीलिए दुनिया भी- बंदरों वाली
अदरक के स्वाद में नहीं पड़ती
उस्तरे से जात-बाहर करती होती है
ये अधिकार
किसी प्रमाणपत्रीय योग्यता के मोहताज नहीं
मिल ही जात हैं
जैसे छत से टपके हों-छप्पर फाड़ के
फटी छत भी
जल्दी ही सिल जाती है
लगने लगते हैं सारे तामझाम पैदायशी
भले ही कुढ़ता रहे चंद्रमा
जलता रहे सूरज
उस्तरे वालों के यहां इन्हें पनाह कहां
उन्हें तो छत फटना भी नहीं सुहाता
लेकिन सोर्स बढ़ाने के ट्रायंगल
और युचर-प्वाइंट के मद्देनजर
सह लेते हैं इतना सेक्रीफायस
फिर सख्त करके छप्पर को
शुरू कर देते हैं प्रक्रिया
धार तेज, और तेज करने की
सिकंदर रहते तेरी तलवार
हाय-तौबा तो मचा सकती है
पर उस्तरे से कटे-बढ़े
न सिसक सकते हैं
न रो सकते हैं
तुम जो खून बहाते हो
वो क्रांतियां कर सकता है
वे
खून को खून ही नहीं रहने देते
पानी बना देते हैं
मन करता है - लेकर चुल्लू डूब मरें
सिकंदर
तेरी सिकंदरी की गर्त तो
सूटकेस, घासफूस और डायरी के
चौड़े आने तक है
लेकिन बंदरों की जात कौन नहीं जानता
सवाल यह है कौन क्या कर सकता है
रही बात गालियों की
पीठ पीछे सबको पड़ती हैं
इन्हें मुंह पर भी निकाल सकते हो
भड़वा-दल्ला कुछ भी कह सकते हो
लेकिन कह नहीं पाते
और इनके सिखाए तुम्हारी हाय-हाय कर जाते हैं
मुंह बंद करने के तरीके और औकात भी तो जानते हैं
खैर यह तो तुम भी मानते हो
इसलिए टांका फिट रखते हो
वरना
तुम जैसों को
आईना दिखाना
ज्यादा मशक्कत की बात नहीं
हम्माम में सब नंगे होते हैं
और बंदरों का क्या वेश !
इन्हीं का है ये देश !