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अभिप्राय / हरीश बी० शर्मा

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अपनी वर्णमाला और शैलियों का
टोकरा उठाए
बेचते हैं
शहर की गलियों में अभिप्राय
नितांत अबूझे
विचार नहीं शब्द।
सिर्फ कारीगरी, सजावट
और विशेषण-विशेषज्ञ के
तुष्ट होता अहं।