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इक मुसाफिर ने कारवां पाया / आनंद कृष्ण

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एक ग़ज़ल

इक मुसाफिर ने कारवां पाया।
कातिलों को भी मेहरबां पाया.

मेरे किरदार की शफाक़त ने-
हर कदम एक इम्तिहाँ पाया।

जुस्तजू में मिरी वो ताक़त है-
तुझको चाहा जहाँ-वहाँ पाया।

वो जो कहते हैं-मिरे साथ चलो
उनके क़दमों को बेनिशां पाया।

इक सितारा निशात का टूटा-
दर्द में हमने आसमां पाया.