भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्योंकि आदमी हैं हम (4) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)
प्रभु !
इतने स्वार्थी मत बनो
मानवता के नाते आओ
हे अवतार !
हे तारणहार !
हमें इन अमानुषों
समाजकंटकों से बचाओ
कब तक हम
इन दानवों से लड़ सकते हैं
आखिर तो बाल-बच्चेदार हैं
परिवार-घरबार भरापूरा संसार है
कैसे बिखरती देख सकती हैं
मेरी इंसानी आंखें
यह सब।