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एक लम्हा गुजार कर आये / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
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एक लम्हा गुजार कर आए ,
या कि सदियों को पार कर आए
जीत के सब थे दावेदार मगर ,
एक हम थे कि हारकर आए
आईने सब खिलाफ़ थे लेकिन ,
पत्थरों से क़रार कर आए
ज़िन्दगी एक तुझसे निभ जाये ,
खुद से धोखे हज़ार कर आए
आज़ ही हम बज़ार में पहुंचे ,
आज ही हम उधार कर आए
अपने दामन को खुद रफ़ू करके ,
खुद की फिर तार-तार कर आए
तेरी महफ़िल में ‘शम्स’ जो आए ,
ग़म की चादर उतार कर आए