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अभागा नहीं होता अवतार / हरीश बी० शर्मा

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पाप का घड़ा भरना और
अवतार का आना सुना है
पढ़ा है संभवामि युगे-युगे का आश्वासन
एक फरिश्ते का आना-इतिहास बनाना
लगता है फरिश्ता आ गया
पाप के खौफ
और मुकाबले से डरे-सहमे लोग
जब घरों में दुबके थे
सिटकनी चढ़ाए बैठे थे खिड़कियों की
आया होगा तारणहार
लड़ाइयां-कत्लेआम तो पढ़े ही हैं
जाने दो
हमने न पहचाना
और वैसे भी हारने वाला, मरने वाला भी
तारणहार होता है
अभागे पराजित से कभी
लेना-देना ही नहीं रहा हमारा।