भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिंदगी / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:52, 10 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जीवन को धूप-छांव का
सहकार कहो
या
दाना चुगती चिड़ियों के साथ
नादां का व्यवहार
पागल के हाथ पड़ी माचिस-सी होती है जिंदगी
दीवाली की लापसी ईद की सिवइंया
क्रिसमस ट्री पर सजे चॉकलेट्स से
बहुत मीठी होती है जिंदगी
जिसे पीना पड़ता है
लेकिन सुधी पाठक ज्यादा माथा नहीं दूखाते
किताब बंद करते होते हैं
जब समाप्त लिखा आता है।