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कोई साक्षी / हरीश बी० शर्मा
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सपने
सीपी मे पड़े जीव से
लगते हैं हमेशा सजीव
आंख नहीं खोलता
डरता हूं
डिगता नहीं विश्वास
मेरा आशावाद
सपने और बुनता है मन
आंखें रहती है बंद
जीव निकल आता है सीपी से बाहर
सपना रहता है फिर भी
सागर के तल में कहीं पड़ी
सीपी होती है मेरे सपनों की साक्षी।