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मैं जानता हूँ / हरीश बी० शर्मा

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मत खींच मेरे सामने
हमारे बीच सरहद
मेरी मुखर वेदना
कल तेरी अन्तर्वेदना
बन जाएगी
मैं जार-जार बिलख सकता हूं
तू सिसकी भी नहीं भर पाएगा
ओझल नहीं होंगे
हम-तुम
पर यह सीमा
मेरी लाचारी बन जाएगी।