भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इसलिए / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:30, 10 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


देवता की खामोशी ही
करती है
आस्था को गूढ़
मान्यता को पैनी।
देवता की पूजा
उसकी जीभ नहीं होने से है
वह आश्वासन भी नहीं देता
मुस्कराता रहता है
हर समय
लगता है-सब इलाज हैं यहां-
गूंगा होने में।