♦ रचनाकार: अज्ञात
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सीया सुधि सुनु हे रघुराइ
विप्र रूप रावण बन आयल भिक्षा लय रघुराई
भिक्षा लय निकलनि जानकी रथ पर लियो चढ़ाई
करूणा करति जाय जानकी शरण शरण गोहराई
कियो वीर अयोध्या जाइ के दशरथ खबरि जनाय
ककर प्रिया, नाम कि अछि, कौन विप्र हरि लय जाई
राम क प्रिता सीता नाम अछि, रावण विप्र हरि लय जाई
एतबा बचन सुननि गिद्ध खगपति रथ स लियो छोड़ाई
अपनहीं चोंच स महायुद्ध कियो, रथ को दिया विलमाई
अग्नि बान गहि मारल निशाचर पंख गयो भहराई
तुलसीदास रघुपति जब अईहें, कहब कथा समुझाई
यह गीत श्रीमति रीता मिश्र की डायरी से