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कॉलेज की पहली बारिश / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

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क्या तुम्हें भी याद है?
कॉलेज की पहली बारिश
जब पेड़ों की पत्तियों को
चूम रही थीं बारिश की बूँदें
फूलों के मुलायम गालों पर
आकार ले रहा था ‘प्रेम’
और उसी पेड़ के नीचे
तुमने रखे थे अपने होंठ
मेरे होंठों के ऊपर
समय की नींद खुल गई थी
‘रिंगटोन’ की आहट से
तुम्हें पता है?
उस फोन से मुझे अब भी नफ़रत है
मगर प्रेम है उस पेड़ से अबतक
जो ज़िंदा गवाह है
मेरे पहले प्रेम का
प्रेम के पहले अनुभव का!
सुनो, बारिश तुम्हें मुबारक़ हो!
इस जलती हुई बारिश में भीग लेना
फिर गौर से देखना, बारिश की बूँदों को
दबे पाँव, आसमान से उतरते हुए
किस तरह तैरती रहती हैं?
हवा की सूख़ी हुई सतह पर
जैसे कॉलेज के दिनों में
छाई रहती थीं तुम
मेरी आँखों की पुतलियों पर
और भरे-भरे-से होते थे ख़्वाब
तुम्हारे वजूद की ख़ुशबू से
जिसकी महक अब भी मौजूद है
और भारी हैं पलकें तुम्हारी याद से
सुनो, बारिश तुम्हें मुबारक़ हो!
क्या तुम्हें भी याद है?
कॉलेज की पहली बारिश!