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जाने के बाद / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

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अधूरी बात, मुलाक़ात अधूरी ही रही
उठी लहरा के और तुम चली भी गई
पता है कुछ जाने के बाद क्या-क्या हुआ
बहुत देर तक नाराज़ रही साँस मेरी
मैंने चाहा कि सीने में धकेलूँ इसको
मगर न बात बनी, बात अधूरी ही रही
एक धड़कन जो रुक-रुक के चलती थी
जाने क्या बात है देर से ख़ामोश-सी है
तुम जानकर हैरान-सी हो जाओगी
आँख बेहिस है मेरी देखती ही रहती है
एक ही रंग है, एक ही चेहरा है अब
नज़र कहीं भी रहे तुम पे आके झुकती है
मेरे होंठों को अगर ग़ौर से देखे कोई
तुम्हारे नाम के अक्षर यहाँ चिपके हैं
मेरे कमरे में अगर कोई झाँक कर जाए
तेरा ख़्याल, तेरा लम्स अभी लेटा है
मुड़ा हुआ है अभी तक तकिया मेरा
बेडसीट की हालत बहुत ही बदतर है
तुम जो बैठी थी ज़रा देर कुर्सी में
और रखा था अपना हाथ टेबल पर
निशान तेरे अब भी मौजूद हैं यहीं
एक और बात जो अब नहीं कही मैंने
कि तेरी ख़ुशबू है अब भी मेरे कमरे में
कि तेरा जादू है अब भी मेरे लम्हे में
और तुम हो मेरे दिल में मेरी रग-रग में
तुम अगले बार जब भी मिलने आओगी
ख़्याल रखना कि बात अधूरी न रहे
ख़्याल रखना मुलाक़ात अधूरी न रहे