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आफत की शोख़ियां हैं / दाग़ देहलवी
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आफत की शोख़ियां है तुम्हारी निगाह में...
मेहशर के फितने खेलते हैं जल्वा-गाह में..
आती है बात बात मुझे याद बार बार..
कहता हूं दोड़ दोड़ के कासिद से राह में..
मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे..
ऐ-दाग़ तुम तो बैठ गये ऐक आह में....