भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीप-4 / चंद्रसिंह बिरकाली

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:13, 14 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रसिंह बिरकाली |संग्रह= }} {{KKCatMoolRajasthani‎}} {{KKCatKavita‎}}<poe…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तपे हुए तकुए सी तेज
सूरज की किरणों की लौ
अपने गले से उतार
कलेजे में छाले उपाड़
दिन भर धूनी रमा
रात को अमृत बरसाया
उस चांद को
लोगों ने चोर बताया ।


अनुवाद : मोहन आलोक