Last modified on 15 सितम्बर 2011, at 16:48

समवेत / ओम पुरोहित ‘कागद’

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:48, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: सब ने समवेत किया चमन को नमन करोड़ोँ हाथोँ ने उगाई फसलेँ लाखोँ हाथ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सब ने समवेत किया चमन को नमन करोड़ोँ हाथोँ ने उगाई फसलेँ लाखोँ हाथोँ ने ...किया श्रम कारखानोँ-खदानोँ मेँ


हजारोँ हाथोँ ने
किया कागज पर हिसाब
फिर सब ने
दुआ मेँ उठाए हाथ
बहबूदी के लिए सबकी
अचानक न जाने कहां से
तुम आ गए
बटोर लिया सब !
करोड़ोँ भूखे पेट
तड़पे-चिल्लाए
तुम मुस्कुरा कर
भीतर चले गए !
निराश लोग
खेतोँ
खदानोँ
कारखानोँ
कागजोँ मेँ लौट आए !
कब तक चलता
यह सिलसिला
लाचार हाथ
अन्न अन्ना अन्न अन्ना
उचारते
मुठ्ठियां तान लौटे हैँ
कहां हो अब तुम ?