भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अनकही बात / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
Dr.bhawna (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 17:51, 7 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना कुँअर }} आज़ एक वर्ष पूरा हो गया मगर मेरा ख्वाब अ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज़ एक वर्ष पूरा हो गया

मगर मेरा ख्वाब

अभी अधूरा है,

अभी तो मुझे पाना है

सूरज़ सा तेज़

और चाँद सी शीतलता,

अभी तो मुझे पानी है

फूलों सी कोमलता

धरती सी सहनशीलता,

अभी तो मुझे चुराने हैं

कुछ रंग इन

रंगबिरंगी तितलियों से,

अभी तो मुझे लेना है

थोड़ा सा विस्तार

इस नीले गगन से,

अभी तो मुझे लानी है

थोड़ी सी लाली इस

ढलती हुई शाम से,

अभी तो मुझे

चुरानी है

थोड़ी सी चमक

इन चमचमाते तारों से,

अभी तो मुझे लेनी है

थोड़ी सी हरियाली

इन लहलहाते खलियानों से,

अभी तो मुझे पानी है

नदी सी चंचलता और

पहाड़ सी स्थिरता

हाँ तभी तो होगा

ये ब्लॉग पूरा

इन रंगों से

सज़ा, हरा भरा

मेरे ख्वाबों की जमीं पर

सज़ा धज़ा।