भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता मुझमें / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 15 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> कविता उन उदास दिनों में …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता
उन उदास दिनों में भी
उत्साहित करती है
जब गिर चुके होते हैं
पेड़ से सारे पत्ते
नंगा खड़ा पेड़
नीचे धूप तापती धरती
रंगीन बाजार महंगी वस्तुओं
अनावश्यक खरीददारी के बीच
ठकठकाती है
संवेदनाओं को
पलटकर दिखाती है
सड़क किनारे खेलते
नंग धड़ंग बच्चे
और भीख मांगती मांएं

बोझिल आंखे टूटते शरीर के
बावजूद कविता
जगाती है देर रात तक
भुलाती है दिन भर की
उथलपुथल
फिर
छोटी सी झपकी भी
कई घंटों की निष्फिक्र नींद के
बराबर होती है
पुराने तवे सी हो चुकी मैं
जल्दी गर्म हो
नियंत्रण खो उठती हूं
भावनाओं एवं स्थितियों पर
तो कभी पाले सी
देर तक हो जाती हूं उदासीन
ऐसे में कविता तुम
मन के किसी कोने में
धीरे-धीरे सुलगती रहती हो
बचाए रखती हो
रिश्तों की गर्माहट व मिठास
मुझे करती हो तैयार
उनका साथ देने को
जो अपनी लड़ाई में
अलग-थलग से खड़े हैं।