भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पीत कमल / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:04, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जल ही जल की
नीली-दर-नीली गहराई के नीचे
जमे हुए काले दलदल ही दलदल में
अपनी ही पूँछ पर सर टिका कर
सो रहा था वह
उचटा अचानक
भूला हुआ कुछ कहीं जैसे सुगबुगाने लगे।

कुछ देर उन्मन, याद करता-सा
उसी बिसरी राग की धुन
जल के दबावों में कहीं घुटती हुई

एक-एक कर लगीं खुलने
सलवटें सारी
तरंग-सी व्याप गयी जल में
अपनी ही पूँछ के बल खड़ा
झूमता था वह
फण खिला था राग की मानिन्द।

ऊपर जल की नीली गहराई में से
फूट-फूट आते थे
पीत कमल !

(1980)