भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्योंकि / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> क्योंकि मैं प्रेम करती …)
क्योंकि मैं प्रेम करती हूं तुमसे
इसलिए मैं प्रेम करती हूं
महकते फूलों से, कांटों से
बहती नदी से, अविचल पर्वतों से
उमड़ते-घुमड़ते, गरजते-बरसते बादलों से
बच्चों से, बड़ों से
किताबों से, गीतों-कहानियों से
लहलहाती फसलों से
खिलखिलाहटों से, बेचैनियों से
अभावों से, संभावनाओं
दर्द से, राहतों से
और बताना चाहती हूं सबको
कि तुमसे प्रेम करना
बाकी दुनिया के साथ साजिश करना नहीं है।
क्योंकि मैं प्रेम करती हूं तुमसे
इसलिए मैं प्रेम करती हूं खुद से।