कभी फुर्सत मिली तो / रेखा चमोली
जाओ जी जाओ
कहीं और सजाना
अपने शहद भरे शब्दों की दुकान
तुम्हारी मिठास पर भारी हैं
रोजमर्रा की खीझ व कड़ुवाहटें
लो जी, अब कहने लगे
जिन्दगी जीने की कला सीखो
परेशानियों से लड़ना सीखो
अरे लड़ते-लड़ते ही तो बच पाई हूं इतनी
कि अब भी तुम्हारी नजर
टूटती जर्जर दीवारों पर उगी
घास की मुट्ठी भर हरियाली पर जा टिकी है
बड़े प्यार-व्यार की बातें करते हो
आओ जरा धुलवा दो मेरे साथ कपड़े-बर्तन
घर भर का झाड़ू-पांेछा करने में मदद कर दो
हाथ-पैर धुलवाकर तेल ही लगा दो
मेरे बच्चों के हाथ-पैरों पर
चलो छोड़ो एक कप चाय ही बना कर पिला दो
क्या कहा?
ये सब जरूर कर लेते लेकिन...
जाओ जी जाओ
ये प्यार-व्यार सब फुर्सत की बातें हैं
कभी फुर्सत मिली तो
जरूर सुनूंगी तुमसे
मेरे गाल पर तिल का क्या मतलब है?