उदासी के बाद / रेखा चमोली
जब बेल ने पहला कदम रखा था पेड़ पर तो
हल्के से कम्पित हो झिझका था पेड़
पत्तियों ने पेड के कानों में जतायी थी नाराजगी
ना जाने क्यों
बेल के अनुरोध को ठुकरा ना सका पेड़
और नतीजा
आज पूरे पेड़ पर छायी है बेल
अपने भरे पूरे कुनबे के साथ।
पत्तियों की धूप से सीधी बातचीत ना हुयी तो वे
तुनककर कुछ दिनों तक
पेड से अबोली रहीं
पर जब पीले पीले नाजुक पंखुडियों वाले फूलों ने
अपनी ऑखें खोली तो
ये पत्तियॉ ही थीं जो
उन्हें गोद में खिलाने को
सर्वाधिक उत्सुक दिखीं
फिर तो पेड और बेल ऐसे घुले मिले
मानों कभी अलग थे ही नहीं
पेड पर बेल ने पीली हरी चादर डाल दी
धीरे धीरे फल लगे
बडे हुए
घर वालों के साथ साथ मोहल्ले में भी बॅटे
सबने स्वाद ले ले कर खाये
जाडे की शुरूवात के साथ ही सूखने लगी है बेल
पेड उदास है
उसकी उदासी का स्पर्श
बेल हर पल महसूस करती है
उसे विश्वास दिलाती है
अगले साल फिर आएगी उससे मिलने
फिर भी पेड़ उदास है
आभास है उसे कुछ दिनों बाद
अपनी पत्तियों के भी
साथ छोड़ देने का
पर बेल जानती है
उदासी के बाद खिलने वाली मुस्कान में
सैकडों सूर्योदयों की लालिमा
छिपी होती है।