भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्यूँ हकीक़त बयान करता है / वीरेन्द्र खरे अकेला
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रा…)
क्यों हक़ीक़त बयान करता है
अपनी ख़तरे में जान करता है
वो ही पाता है ज़िन्दगी का मज़ा
दिल को जो आसमान करता है
इतना क़ाबिल नहीं हुआ है अभी
जितना खुद पे गुमान करता है
ख़ुद सफ़ाई से झूठ बोल चुका
मेरे आगे ‘कुरान’ करता है
मुझको है अपनी मुफ़लिसी पे ग़ुरूर
तू जो दौलत पे शान करता है