धूप जब आँखों में चुभती है
पलकों पर रौशनी की राख लिए
अपनी ही तपिश से झुलसा हुआ सूरज
सर झुकाए
मेरी सिगरेट की डिबिया से पनाह मांगता है
सिगरेट सोचती है
अगर सूरज की सिफारिश करुँ
तो खतरा है एक
कहीं सुलग न उठूँ मैं
कहीं ख़त्म न हो जाए वजूद मेरा
अचानक बहुत तेज़
शाम बरसने लगती है
और भीगता सूरज
अपनी माँद में लौट जाता है