भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़्म एक वारदात / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
Tripurari Kumar Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:19, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> मेरी हर नज़्म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी हर नज़्म एक वारदात है
और हर वारदात की वजह एक बेख़्वाब रात है
और हर बेख़्वाब रात
दरख़्शां रहती है तुम्हारे ख़्याल से
तुम हिज़्र का कमाल देखो तो सही
ये क्या मुक़ाम है ?
जिस पर खड़ा हूँ आज, यहाँ
हर लम्हा ख़ुद से ही मुख़ातिब है
सोच की नोक तुम्हारी जानिब है
क़दम रखा है कश्ती ने
नींद की सतह पर जब भी
कोई तूफान मचला है फ़लक में फिर
रूख़सार-ए-उफ़क़ पर तीरगी-सी छाई है
शफ़क़ की लाली मांद हो चली
और सुनहरे अब्र की सतरंगी परतें
अपनी ही तहों में लिपट कर खो गई कहीं
अब तुम्हीं कहो ?
रूह को ख़ौफ़ के साये में रखना
कहाँ तक लाजिमी है ?
रात बेख़्वाब की छाना तो कुछ ख़्याल मिले
कुछ हुस्न मिले कुछ हुस्न-ए-लाज़वाल मिले