भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल की याद / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 19 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)
सदा ऐसा ही नहीं था मैं
-उजड़ा और निर्जल
हरा भी था कभी, रस से भरा-
अपनी बाँहों में भींचता सब कुछ
आत्मा को सींचता
-अब हूँ सिर्फ निर्जल रेत, सूखा खार
यानी थार।
हाँ, कभी मुझ में तड़फड़ा कर
जागती है याद उस जल की
हरियल की
खेंखारते उठते बगूले, बवंडर
भटकते, सब कुछ फटकते
घेरते आकाश।
लेकिन व्यर्थ ! थक-हार कर थमते
धोरों में मुँह छिपा कर सुबकते
विवश सो रहते
निर्जल प्यार !
नहीं फिर भी नहीं कढ़ती
नहीं कढ़ सकती
मुझ में किरकिराती हुई
जल की याद !
(1982)