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तलाई की मुलक / नंदकिशोर आचार्य
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पषवाड़ा फेरे सो रही है
मानिनि-सी वह
पलका दे रही है पाल
गोरे डील-सी
झुकी है नीम की मनुहार
तन पर नर्म
कामना-सी व्यापती है गन्ध
गहरी नींद के मिस फूटती है
पुलक !
छुपाये भी नहीं छुपती
रह-रह दिप रही जल में
मुग्धा तलाई की मुलक !
(1982)