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आत्मा सा खिल उठेगा / नंदकिशोर आचार्य

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किसे मालूम कितना अभी बाकी
पैंडे का नहीं है अंत कोई
और ऊपर चिलचिलाती धूप है यह
आग बरसाती
-नहीं, हारा नहीं हूँ, कुछ
थक रहा हूँ।

कहो तो कुछ देर थम लें
पीपली की छाँह गहरी
तुम्हारे हाथ पोया बाजरे का एक टिक्कड़
आँखों-से चमकते कटोरे में प्यार-सी गुड़राब
और तुम्हारे साथ के विश्वास-से गहरे कुएँ का
निर्मल, शीतल जल !

देखना, सब ओर पसरा, दहकता
आग का यह कुण्ड अब भी
आत्मा-सा खिल उठेगा।

(1983)