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तुम सृजन करो/ गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल'

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तुम सृजन करो मैं हरि‍त प्रीत शुंगार सजाऊँगा।
वसुंधरा को धानी चूनर भी पहनाऊँगा।
देखें होंगे स्‍वप्‍न यथार्थ में जीने का है वक्‍़त,
ग्रामोत्‍थान और हरि‍त क्रांति‍ की अलख जगाऊँगा।।

बढ़ते क़दम शहरकी ओर रोकूँगा जड़वत हो।
ग्राम्‍य वि‍कास का युवकों में संज्ञान अनवरत हो।
नई-नई तकनीक उन्‍नत कृषि‍ कक्षायें हों।
साधन संसाधन लाने की कार्यशालायें हों।
कहाँ कसर है ग्राम्‍य चेतना शि‍वि‍र लगाउँगा।।