भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह एक राग है / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 20 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


यह एक राग है
जिस ने पेड़ों में जगायी है आग
तभी तो हर पेड़
कोई लपट है जैसे

लपट:
जिस के सीने में छिपी है गहरे
वह हरी, ठंडी आग !

इस लपट से लिपटने का राग है हेमन्त
जिसे जंगल गाता है
आँचल में हिमकमलों-सा निस्पन्द
सो रहा है वसन्त जो
सिहरता है, जाग जाता है।

(1977)