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शाम / नंदकिशोर आचार्य
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झरते सिन्दूरी पत्तों से
भर देता है माँग धूप की
पकता हुआ चिनार-
गोदी में अधलेटी वह
ललछौंही हो कर
सिमट गयी है
फैले सीने में चिनार के
और मूँद लेती है पलकें।
(1985)