भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लपट करती हुई / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:06, 20 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अंगारों पर आ गई राख को
झाड़ती वह
फिर सजाती है
अपनी काँगड़ी पुरानी
बुझ रही आग को
लपट करती हुई।

एक पल की लपट में ही
दमक जाते हैं
सिन्दूरी चिनार के पात
झरते हुए।

(1985)