भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संबंधों की अलगनियों पर / ओम निश्चल

Kavita Kosh से
Om nishchal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:16, 21 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह=शब्‍द सक्रिय हैं }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसिम किसिम के
संबोधन के महज दिखावे हैं
संबंधों की अलगनियों पर सबके दावे हैं।

दुर्घटना की आशंकाऍं
जैसे जहॉं-तहॉं
कुशल क्षेम की तहकी़कातें
होती रोज यहॉं
अपनेपन की गंध तनिक हो
इनमें मुमकिन है
पर ये रटे-रटाए जुमले महज छलावे हैं।

घर दफ्तर हर जगह
दीखते बॉंहें फैलाए
होठों पर मुस्कानें ओढ़े
भीड़ों के साए
हँसते बतियाते हैं यों तो
लोग बहुत खुल कर
मुँह पर ठकुर-सुहाती भीतर जलते लावे हैं।

निहित स्वार्थों वाली जेबें
सभी ढॉंपते हैं
ग़ैरों की मजबूरी का सुख
लोग बॉंटते हैं
दुआ-बंदगी, हँसी -ठहाके
हुए औपचारिक
आईनों के पुल तारीफी महज भुलावे हैं।