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रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या / 'अना' क़ासमी
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वीरेन्द्र खरे अकेला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:13, 21 सितम्बर 2011 का अवतरण
रोज़ चिकचिक में सर खपायें क्या फैसला ठीक है निभायें क्या
चश्मेनम का अजीब मौसम है शाम,झीलें,शफ़क़,घटायें क्या
बाल बिखरे हुये, ग़रीबां चाक आ गयीं शहर में बलायें क्या
अश्क़ झूठे हैं,ग़म भी झूठा है बज़्मेमातम में मुस्कुरायें क्या
हो चुका हो मज़ाक तो बोलो अपने अब मुद्दआ पे आयें क्या
ख़ाक कर दें जला के महफ़िल को तेरे बाजू में बैठ जायें क्या
झूठ पर झूठ कब तलक वाइज़ झूठ बातों पे सर हिलायें क्या