भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छाया पेड़ों की ! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 26 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |संग्रह=उड़न खटोले आ / रमेश तैलंग }} {{KKCat…)
कड़ी धूप में अच्छी लगती
छाया पेड़ों की ।
थके बदन की पीड़ा हरती
छाया पेड़ों की ।
कभी किसी में भेद न करती
छाया पेड़ों की ।
हर पंथी की सेवा करती
छाया पेड़ों की ।
घट कर बढ़ती, बढ़ कर घटती
छाया पेड़ों की ।
अच्छा बोलो, कैसे बनती
छाया पेड़ों की ।