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फूल ज्यों कपास के / रमेश तैलंग
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बादल ये, लगते हैं-
फूल ज्यों कपास के ।
झूलते हवाओं की
नर्म-नर्म बाहों में ।
आसमान सारा का
सारा निगाहों में ।
सरकारी दूत हैं-
ये सब चौमास के ।
आँख-मिचौनी पल-पल
सूरज से खेलते ।
छाया देते सबको
ख़ुद आतप झेलते ।
गाते मल्हार,
गीत रचते उल्लास के ।