Last modified on 11 अक्टूबर 2011, at 16:23

ख़्वाब / मधुप मोहता

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 11 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |संग्रह=समय, सपना और तुम ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मैंने सोचा था कि ख़्वाबों में तुझे पा लूंगा,
ज़िंदगी ख़्वाब बना दी मैंने।
तू मगर सबसे बड़ा सच निकली,
ज़िंदगी ख़्वाब थी, फिर ख़्वाब रही।

ख़्वाब और सच के दरम्यान कभी,
मैं तसव्वुरात के पुल बांधूंगा।
न सही तू, मेरा अक्स सही,
तुझको यादों में कहीं पा लूंगा।